विश्व भर में लगातार बढ़ रहे हैं रिफ्यूजी संकट

"पंछी नदिया पवन के झोंके
कोई सरहद ना इन्हें रोके
सरहदें इन्सानों के लिए हैं
सोचो तुमने और मैने क्या पाया इन्सां हो के"

जावेद अख्तर के द्वारा फिल्म रिफ्यूजी के लिए लिखी यह गीत आज भी प्रासंगिक है। 2001 से प्रतिवर्ष20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है। तुर्की के समुद्र तट पर मिले एलन कुर्द के शव ने सारी दुनिया को झकझोर दिया था। और मानव द्वारा बनाई गई सीमा की समस्याओं का दर्दनाक तस्वीरों को उजागर किया था।शरणार्थी उन्हें कहा जाता जो जलवायु संकट, आंतरिक संघर्ष , युद्ध , सत्ता संघर्ष ,आतंकवाद,भूख , धार्मिक उत्पीड़न,जीविका के संकट के कारण अपने घर और देश को छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं।

अफ्रीकी महादेश में चलने वाले सत्ता संघर्ष और जलवायु परिर्वतन के कारण ना जाने कितने ही शरणार्थी यूरोप जाना चाहते हैं। इनकी आशाएं भूमध्यसागर में नावों ,जहाजों के डूबने के साथ ही मर जाती है। और मर जाती है , उन सब की आशाएं जो अपने लिए एक अच्छे जीवन की तलाश चाहते हैं। हालांकि इनमें बहुत सारे प्रवासी भी होते हैं। प्रवासी के लिए जरूरी नहीं है कि उन्होंने अपने देश में उत्पीड़न का सामना किया हो या उनके देश में संघर्ष की स्थिति हो। रिफ्यूजी को रिफ्यूजी लॉ के तहत जो सुरक्षा प्राप्त होती है वह प्रवासियों को प्राप्त नहीं होती है।
वर्तमान समय में शरणार्थी संकट एक बहुत बड़ी चुनौती है जिसे बढ़ती खाद्य पदार्थों और तेल गैसों की मंहगाई ने और बढ़ा दिया है। इसके साथ साथ संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी आयोग फंडिंग की समस्या से जुझ रहा है। यूएनएचसीआर के अनुसार , विश्वभर में करीब 9 करोड़ शरणार्थी है। इनमें से दो तिहाई करीब 68% सिर्फ 5 देशों से आते हैं। ये पांच देश ,सीरिया , वेनेजुएला, अफगानिस्तान, दक्षिण सूडान, म्यांमार हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा रिफ्यूजी सीरिया से आते हैं।जिनकी संख्या करीब 70लाख है। इनमें से अधिकतर करीब 72% रिफ्यूजी शरण के लिए अपने पड़ोसी देश का ही रुख करते हैं। विश्व में सबसे ज्यादा रिफ्यूजी को शरण देने वाला देश तुर्की है। जिनकी संख्या करीब 40 लाख है।

शरणनार्थियों को सबसे बड़ी समस्या स्थानीय लोगों से होती है। स्थानीय लोगों को लगता है कि इनके संसाधनो पर दूसरे लोगों के बीच बंटवारा हो रहा है।और ये अपनी परेशानियों के लिए इन्हे सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराते हैं। दक्षिणपंथी पार्टियों के निशाने पर तो ये हमेशा से रहते हैं। इनकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि ये अपने देश में रह नहीं सकते और जिस देश में जाते हैं वहां के लोग इन्हें अपना मानते नहीं।यानी की ये लोग स्टेटलेस (राज्यविहीन) बन कर रह जाते हैं।इसलिए इनकी समस्या को राष्ट्रवाद के चश्में से तो सुलझाया नही जा सकता। इसके लिए हमें वैश्विक नजरिए की जरूरत है।

रूस और यूक्रेन युद्ध ने तो इसमें और भी वृद्धि कर दी है। इस समय शरणार्थियों का बड़ा संकट इथोपिया में चल रहे गृहयुद्ध के कारण उत्पन हो रहा है। जलवायु परिर्वतन के कारण पड़े सूखे ने भुखमरी की स्थिति पैदा कर दी है। विकसित देशों द्वारा यूएनएचसीआर को दी जा रही फंडिंग को बढ़ाए जाने की आवश्कता है। जिससे की इन रिफ्यूजी की मदद की जा सके।

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