अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड के 1973 में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले को 6-3 के बहुमत से पलट दिया है। रो बनाम वेड केस के बाद अमेरिका में महिलाओं को गर्भपात कराने की अनुमति मिली थी। इस फैसले के बाद कोई भी राज्य गर्भपात को प्रतिबंधित करने वाला कानून नही बना सकता था। यही वो शक्ति का स्रोत था ,जो महिला को अपने शरीर के संबंध में निर्णय लेने की आजादी देता था। वो बच्चे को जन्म देना चाहती है या गर्भपात कराना चाहती हैं ,ये सिर्फ व सिर्फ महिला का फैसला होता था। इससे मेरा शरीर , मेरा अधिकार की भावना का विकास हुआ था।
लेकिन , एक बार फिर से इस नए फैसले के बाद ,ये अधिकार राज्यों को मिल जायेंगे।और राज्य गर्भपात को प्रतिबंध करने वाले कानून लागू करने के लिए स्वतंत्र होंगे। अलग अलग मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे कुल 13 राज्य हैं जो गर्भपात पर रोक लगा सकते हैं। इन 13 राज्यों में से सिर्फ 5 राज्य ही रेप , व्यभिचार जैसे कारणों से हुए गर्भधारण को गर्भपात कराने की अनुमति देते हैं।बाकी के राज्य सिर्फ मां की जान खतरे में पड़ने की स्थिति में ही गर्भपात कराने की अनुमति देते हैं। मिसौरी और टेक्सास गर्भपात को प्रतिबंधित करने वाला पहला राज्य बन गया है।इन सभी राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी की सरकार है।
राष्ट्रपति जो बिडेन ने इस फैसले के बाद कहा है कि ,"महिलाओं का जीवन खतरे में हैं। वहीं रिपब्लिकन पार्टी ने इसे "जीवन की जीत" बताया है और कहा है कि एक बार फिर से गर्भपात पर बहस राज्यों और लोगों के पास लौट आई है।ऐसे फैसले आने की आशंका पहले से ही जताई जा रही थी। जब अमेरिकी न्यूज वेबसाइट पोलिटिको ने बहुमत के निर्णय को को लीक कर दिया था।उसमें ही इस बात के संकेत मिल चुके थे।
लोग वर्षों से रो बनाम वेड मामले में दिए निर्णय को कानून में बदले जाने की मांग कर रहे थे। 2009 में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति के उम्मीदवार बराक ओबामा ने वादा किया था कि वे इस निर्णय को कानून में बदल देंगे। लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि ये उनकी प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है। उस समय डेमोक्रेटिक पार्टी कांग्रेस में बहुमत में थी। और इस पर कानून बनाए जा सकते थे। वर्तमान बिडेन सरकार कांग्रेस में अल्पमत में है और इस पर कानून नहीं बना सकती। नवंबर में अमेरिका के उच्च सदन सीनेट के चुनाव होने वाले हैं। जिसमें डेमोक्रेटिक पार्टी इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी। खासकर के महिलाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगी। इस बात का संकेत हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की अध्यक्ष और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता नैंसी पेलोसी के बयान में दिखें , जब उन्होंने कहा की जनता नवम्बर के चुनाव में बैलेट से जवाब देगी।
कुछ डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता का कहना है कि हमें सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना चाहिए। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में रूढ़ीवादी न्यायाधीशों का बहुमत है। जिन्हें डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में नियुक्त किया था। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या 9 है जिसमें एक मुख्य न्यायधीश और 8 सहायक न्यायाधीश हैं। ये नियुक्ति के बाद जीवन पर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं। इसलिए इस निर्णय के आने के बाद लोगों के मन में आशंकाएं और बढ़ गई है कि अब अन्य अधिकारों को तो कम नहीं किया जाएगा। जिसके संकेत न्यायधीश क्लेरेंस थॉमस ने अपने निर्णय में दिए हैं। उन्होंने कहा है कि आने वाले दिनों में विवाहित जोड़ों द्वारा गर्भनिरोधक का उपयोग करने का अधिकार ,1965, सोडोमी के अपराधीकरण पर रोक ,2003 और समान लिंगों के बीच विवाह, 2015 पर भी हमें विचार करना चाहिए। हालांकि इस पर साथी रूढ़ीवादी जज सहमत नहीं दिखें। लेकिन इस निर्णय को देखते हुए आने वाले दिन इनके लिए कठिन होने वाले हैं।
इस फैसले में असहमति के विचार रखने वाले तीन न्यायाधीशों ने लिखा है कि ," इस निर्णय के बाद आज की महिला के पास उसकी मां और दादी से भी कम अधिकार होंगे। उन्होंने कहा है कि कोर्ट को सिद्धांतों के आधार पर निर्णय देना चाहिए ना की सामाजिक और राजनीतिक दवाब में आकर। ऐसा होने से लोगों की नजर में कोर्ट की प्रतिष्ठा कम होती है और कोर्ट से लोगों का विश्वास उठता है।
पहले से ही अलग अलग मुद्दों को लेकर विभाजित अमेरिका इस निर्णय के बाद और भी ध्रुवीकृत हो गया है।लोग राजनीतिक लाइन और विचारधारा के आधार पर बंट चुके हैं। लेकिन उस आधी आबादी का क्या , जिसके पूर्वजों ने लड़ कर ये अधिकार हासिल किए थे। जिसे फिर से छीन लिया गया। आज की पीढ़ी उन्हीं अधिकारों के लिए आज सड़कों पर है और पूछा रही है कि इस 21वीं सदी में भी हम अपने शरीर के बारे में निर्णय नहीं ले सकते? इस निर्णय ने उन्हें देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है।
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