अग्निपथ योजना पर हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन के बीच आर्थिक सुरक्षा और मीडिया की भूमिका पर उठते सवाल

केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। बिहार ,उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों ये प्रदर्शन काफी हिंसात्मक भी रहे। जहां ट्रेन ,बस, गाड़ियों, रेलवे स्टेशन और पुलिस थानों को जलाया गया। हिंसात्मक प्रदर्शन को कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। लोकतंत्र में तो हिंसा का कोई स्थान ही नहीं होना चाहिए। आप अपनी मांगों को शांतिपूर्वक ढंग से रखिए। हिंसात्मक प्रदर्शन से प्रदर्शन से प्रदर्शनकारियों की ही विरोध प्रदर्शन कमजोर पड़ता है। जब चर्चा मांगों से हट कर प्रदर्शन के तरीकों और लॉ एंड ऑर्डर पर शिफ्ट हो जाती है।और लोग इनके द्वारा उठाए गए मुद्दों के लाभ और हानि पर चर्चा करने के बजाय प्रदर्शन के लाभ और हानि पर चर्चा करने लगते हैं। लेकिन, हमें इस पर बात करने की जरूरत है कि ये प्रदर्शन इतने हिंसात्मक क्यों हो जाते हैं? और इसके लिए कौन सबसे ज्यादा जिम्मेदार है?

मिडिया की भूमिका

संसदीय प्रत्यक्ष लोकतंत्र में मीडिया की क्या भूमिका है? मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। जिसका मुख्य काम लोगों को सूचना देना , शिक्षित करना और मनोरंजन करना है। लेकिन लोकतान्त्रिक देशों में इसकी ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है। लोकतंत्र में शाषितों, आम लोगों , कमजोर और हसिए पर रहने वाले लोगों की आवाज और उनकी मांगों को शासकों तक पहुंचाना भी मीडिया का मुख्य काम बन जाता है। सेना में पिछले दो सालों से जवानों की भर्ती नही हुई।सरकार का कहना है कि कोविड के कारण भर्ती प्रक्रिया रुकी रही। अभ्यर्थी लगातार अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे और सोशल मीडिया पर अपनी मांगों को उठाया जा रहा था। मुख्यधारा की मीडिया ने इसे विशेष स्थान देना उचित ना समझा। बेरोजगारी और आर्थिक मुद्दों को ज्यादा स्थान नही मिलने के कारण आम लोगों के मुद्दे सरकार तक नहीं पहुंच पाई।

आर्थिक और जॉब की सुरक्षा

आर्थिक और जॉब की सुरक्षा सेना की नौकरी में सबसे ज्यादा थी। एक निश्चित अवधि तक काम और सेवानिवृत्ति के बाद जीवन भर पेंशन की सुविधा , जो युवाओं को सबसे ज्यादा आकर्षित करती थी। विशेषकर ग्रामीण परिवार के गरीब और निम्न मध्यम परिवार के युवाओं को। इसके साथ देश सेवा का गौरव और सामाजिक प्रतिष्ठा भी जुड़ी थी। ना जाने हर साल कितने ही युवा दसवीं और बारहवीं पास करने के बाद इसकी तैयारी में लग जाते हैं। दो सालों से भर्ती ना होने के कारण इनके मन में पहले से ही रोष था। रही सही कसर आर्थिक और जॉब सुरक्षा को खत्म कर के पूरा कर दी। लोगों के मन में इसकी भी चिंता है कि 25% तक अग्निवीरों को वापस सेना में रख लिया जाएगा। वो इस 25% में आ पाएंगे की नहीं। इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर क्या असर पड़ेगा? ये सवाल इन नौजवानों के मन में कौंध रहे हैं। जिसकी परिणीति हमें विरोध प्रदर्शन के रूप में देखने को मिल रही है।

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